अजनबी साया। Stranger Shadow। Suspense Story in Hindi

अजनबी साया। Ajnabi Saaya। Suspense Story in Hindi

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अनदेखी दस्तक - Unseen Knock । Stranger Shadow। Suspense Story in Hindi

अनदेखी दस्तक (Unseen Knock)

समीर एक आम-सा सॉफ्टवेयर इंजीनियर था। उसकी ज़िंदगी सुबह 9 से शाम 6 की नौकरी, वीकेंड पर दोस्तों के साथ घूमना-फिरना और कभी-कभार कोई नई वेब सीरीज़ देखने में सिमटी हुई थी। पिछले कुछ हफ़्तों से उसे अपने छोटे से 2BHK फ्लैट में कुछ अजीब-सा महसूस हो रहा था। उसे ऐसा महसूस होता, जैसे कोई उसे देख रहा हो, कोई है जो हर वक़्त उसके आस-पास मौजूद रहता है, पर दिखाई नहीं देता। यह सिर्फ़ एक एहसास था, जिसे वह शुरुआत में काम का तनाव या थकान समझकर नज़रअंदाज़ कर देता था। लेकिन यह "Suspense Story in Hindi" यहीं से शुरू होती है।

एक रात, जब वह अपने लैपटॉप पर देर तक काम कर रहा था, उसे अपने पीछे खिड़की के शीशे पर एक धुंधला सा अक्स दिखाई दिया। उसने तेज़ी से पलटकर देखा, पर वहां कोई नहीं था। शायद यह सिर्फ़ उसकी कल्पना थी, या बाहर सड़क की लाइट का कोई खेल जो जल-बुझ हो रही थी। समीर उठा और उसने खिड़की के पर्दे ठीक से लगा दिए और वापस काम में जुट गया, पर उसका मन अब बेचैन हो चुका था।

अगले दिन ऑफिस से लौटते वक़्त, उसे लगा जैसे कोई उसका पीछा कर रहा हो। उसने कई बार पलटकर देखा, पर सुनसान सड़क पर उसके अलावा कोई नहीं था। घर पहुँचकर उसने दरवाज़ा बंद किया और गहरी सांस ली। "मैं कुछ ज़्यादा ही सोच रहा हूँ," उसने खुद से कहा। रात का खाना खाकर वह सोने चला गया, पर नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी। आधी रात को अचानक किसी चीज़ के गिरने की आवाज़ से उसकी नींद खुली। आवाज़ किचन से आई थी। उसका दिल ज़ोरों से धड़कने लगा। उसने धीरे से अपने बेड के पास रखा टेबल लैंप ऑन किया और हौले-हौले किचन की तरफ बढ़ा।

किचन में सब कुछ अपनी जगह पर था, सिवाय एक स्टील के गिलास के जो फर्श पर गिरा पड़ा था। उसने सोचा की हो सकता है बिल्ली अंदर आ गई हो, पर उसके फ्लैट में बिल्ली के आने का कोई रास्ता नहीं था। उसने गिलास उठाया और वापस अपने कमरे में आ गया। उसका मन मानने को तैयार नहीं था कि यह सब महज़ इत्तेफाक है।

अगले कुछ दिनों तक यह सिलसिला चलता रहा। कभी उसे अपने पीछे किसी के कदमों की आहट सुनाई देती, तो कभी अचानक कमरे की कोई चीज़ अपनी जगह से थोड़ी खिसकी हुई मिलती। एक शाम जब वह बालकनी में खड़ा चाय पी रहा था, तो उसे सामने वाली बिल्डिंग की छत पर एक परछाई-सी दिखाई दी, जो उसी की तरफ देख रही थी। जैसे ही समीर ने ध्यान से देखने की कोशिश की, वह परछाई गायब हो गई। अब समीर को यकीन हो चला था कि कोई तो है जो उस पर नज़र रख रहा है।

उसने अपने सबसे करीबी दोस्त रोहन को यह सब बताया। रोहन ने उसकी बात को हंसी में उड़ा दिया। "यार समीर, तू आजकल हॉरर फिल्में ज़्यादा देख रहा है क्या? थोड़ा रिलैक्स कर, सब ठीक हो जाएगा।"

लेकिन समीर जानता था कि यह उसकी कोरी कल्पना नहीं है। वह "अजनबी साया" अब उसके ज़ेहन पर हावी होने लगा था। उसकी रातों की नींद उड़ चुकी थी और दिन का चैन भी खो चुका था। वह हर वक़्त एक अनजाने डर के साये में जीने लगा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह कौन है और उससे क्या चाहता है ?

क्या यह कोई इंसान है या कुछ और? यह सवाल उसके दिमाग में किसी कीड़े की तरह कुलबुला रहा था। उसने फैसला किया कि वह इस रहस्य का पता लगाकर रहेगा, चाहे इसके लिए उसे कुछ भी करना पड़े। उसने अपने घर के मुख्य दरवाज़े के बाहर एक छोटा-सा हिडन कैमरा लगाने का फैसला किया, ताकि अगर कोई सच में आता-जाता है, तो पकड़ा जा सके। उसे उम्मीद थी कि जल्द ही इस रहस्य से पर्दा उठेगा और वह "अजनबी साया" बेनकाब होगा। लेकिन उसे क्या पता था कि यह तो बस खौफनाक सफर की शुरुआत है।


गहराता रहस्य (The Deepening Mystery)

हिडन कैमरा लगाने के बाद समीर को थोड़ी तसल्ली हुई थी। उसे लगा कि अब जल्द ही उस "अजनबी साये" का राज़ खुल जाएगा। लेकिन पहले दो दिन कैमरे की रिकॉर्डिंग में कुछ भी असामान्य नहीं मिला। सिर्फ़ अख़बार वाला, दूध वाला और कभी-कभार आने वाले कूरियर बॉय के अलावा कोई भी दरवाज़े के आस-पास नहीं फटका था। समीर की बेचैनी और बढ़ने लगी। क्या वह सच में वहम का शिकार हो रहा था?

 

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गहराता रहस्य - The Deepening Mystery। Stranger Shadow। Suspense Story in Hindi

तीसरी रात, उसे फिर वही एहसास हुआ। कमरे में अजीब-सी ठंडक फैल गई, जबकि बाहर मौसम गर्म था। उसे लगा जैसे कोई उसके बिस्तर के पास खड़ा उसे घूर रहा हो। उसने हिम्मत करके आँखें खोलीं, पर कमरे में घोर अँधेरा था। उसने झट से मोबाइल की टॉर्च जलाई, रौशनी पूरे कमरे में फैल गई, पर वहाँ कोई नहीं था। एक अजीब सी, भीनी-भीनी गंध हवा में तैर रही थी, जिसे वह पहचान नहीं पा रहा था।

अगली सुबह, जब उसने कैमरे की रिकॉर्डिंग चेक की, तो उसके होश उड़ गए। रात के करीब 2 बजे, एक धुंधली-सी आकृति कैमरे के सामने से गुज़री थी। उसका चेहरा साफ नहीं था, और वह कुछ ही सेकंड के लिए दिखी थी, लेकिन इतना तय था कि वह कोई इंसान ही था, लंबा और पतला। समीर का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। तो वह सच था। कोई सच में उस पर नज़र रख रहा था।

उसने फुटेज को कई बार ज़ूम करके देखा, पर उस आकृति की पहचान करना नामुमकिन था। उसने सोचा कि पुलिस को बताया जाये, पर उसके पास कोई ठोस सबूत नहीं था। पुलिस ने भी उसका वहम बता कर उसे टाला दिया।

उस रात समीर सोया नहीं। वह हाथ में एक मजबूत डंडा लेकर लिविंग रूम में सोफे पर बैठा रहा, दरवाज़े की तरफ आँखें गड़ाए हुए। इंतज़ार करते-करते कब उसकी आँख लग गई, उसे पता ही नहीं चला। अचानक, दरवाज़े पर हल्की सी खटखटाहट हुई। समीर हड़बड़ाकर उठा। रात के ढाई बज रहे थे। उसने दरवाज़े के 'आई-होल' से झाँका। बाहर कोई नहीं था। पर खटखटाहट फिर हुई, पर इस बार थोड़ी ज़ोर से।

"कौन है?" समीर ने कांपती आवाज़ में पूछा।
कोई जवाब नहीं आया। सिर्फ़ खामोशी ही थी।
फिर से खटखटाहट की आवाज आई। इस बार ऐसा लगा जैसे कोई नाखून से दरवाज़ा खरोंच रहा हो। समीर का डर अब चरम पर था। यह "अजनबी साया" उसे मानसिक रूप से तोड़ने की कोशिश कर रहा था।

उसने हिम्मत करके दरवाज़ा थोड़ा सा खोला। बाहर गलियारे में हल्की रौशनी थी, पर कोई नहीं दिख रहा था। जैसे ही उसने दरवाज़ा बंद करना चाहा, उसे नीचे ज़मीन पर एक छोटा-सा कागज़ का टुकड़ा पड़ा दिखा। उसने झुककर उसे उठाया। उस पर लाल स्याही से सिर्फ़ एक शब्द लिखा था - "तुम।"

समीर की रूह काँप गई। यह कौन था जो उसके इतने करीब पहुँच चुका था? और वह "तुम" लिखकर क्या जताना चाहता था? क्या यह कोई धमकी थी? या कोई इशारा?

अगले दिन, उसने अपने फ्लैट की तलाशी लेने का फैसला किया। हर कोना, हर अलमारी, हर दराज। शायद उसे कोई सुराग मिल जाए। किचन में, अनाज के डिब्बों के पीछे, उसे एक पुराना, जंग लगा चाकू मिला। यह चाकू उसके घर का नहीं था। उसने ऐसा चाकू पहले कभी नहीं देखा था। क्या यह उसी "अजनबी साये" का था? क्या वह इतना खतरनाक हो सकता है?

उसने वह चाकू सावधानी से एक प्लास्टिक बैग में रखा। अब उसके पास एक और सबूत था, पर यह सबूत उसे और डरा रहा था। वह समझ गया था कि मामला सिर्फ़ नज़र रखने तक सीमित नहीं है। यह "अजनबी साया" शायद कुछ और चाहता था, जो खतरनाक भी हो सकता हैं।

समीर ने अपने लैपटॉप पर उस धुंधली आकृति की फुटेज और कागज़ पर लिखे "तुम" शब्द की तस्वीर को बार-बार देखा। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। तभी उसे याद आया कि कुछ दिन पहले, ऑफिस से लौटते वक़्त, एक पुरानी, काले रंग की गाड़ी कई बार उसके आस-पास दिखी थी। क्या उस गाड़ी का इस सबसे कोई लेना-देना हो सकता है? उसने उस गाड़ी का नंबर नोट करने की कोशिश की थी, पर ठीक से देख नहीं पाया था।

समीर अब अकेला महसूस कर रहा था। रोहन भी उसकी बातों को गंभीरता से नहीं ले रहा था। उसे खुद ही इस रहस्य की तह तक पहुँचना था। उसने फैसला किया कि वह अगली रात जागकर उस "अजनबी साये" का इंतज़ार करेगा, और इस बार वह उसे पकड़कर ही रहेगा, या कम से कम उसकी पहचान तो ज़रूर कर लेगा।


सच का सामना (Facing the Truth)

समीर ने अगली रात के लिए पूरी तैयारी कर ली थी। उसने लिविंग रूम की सारी लाइटें बंद कर दीं, सिवाय एक छोटे से नाइट लैंप के, जिसकी पीली रोशनी कमरे में रहस्यमयी माहौल बना रही थी। उसने दरवाज़े के ठीक पीछे एक भारी सा फूलदान रख दिया था, ताकि अगर कोई दरवाज़ा खोलने की कोशिश करे तो आवाज़ हो। हाथ में उसने वही मजबूत डंडा थाम रखा था।

घड़ी की सुइयां धीरे-धीरे टिक-टिक रही थीं। रात का एक बजा, फिर दो। समीर की पलकें नींद की वजह भारी हो रही थीं, पर वह किसी भी कीमत पर सोना नहीं चाहता था। तभी, लगभग ढाई बजे, उसे दरवाज़े पर वही चिरपरिचित, हल्की सी खरोंचने की आवाज़ सुनाई दी। उसका दिल उछलकर हलक में आ गया। वह सांस रोककर इंतज़ार करने लगा।

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सच का सामना - Facing the Truth । Stranger Shadow। Suspense Story in Hindi

खरोंचने की आवाज़ बंद हुई और फिर दरवाज़े का हैंडल धीरे से नीचे घूमा। समीर ने देखा कि दरवाज़ा हल्का-सा खुला और एक पतली सी छाया अंदर दाखिल हुई। समीर अपनी जगह पर बुत बना बैठा रहा, अपनी सांसों को काबू में रखने की कोशिश करता हुआ। वह "अजनबी साया" धीरे-धीरे कमरे के बीचों-बीच आकर खड़ा हो गया, शायद अँधेरे में समीर को तलाश रहा था।

अब समीर के पास मौका था। उसने पूरी ताकत से डंडा घुमाया, लेकिन वह साया फुर्ती से पीछे हट गया और डंडा हवा में लहराकर रह गया। "कौन हो तुम? और क्या चाहते हो मुझसे?" समीर चीखा।

वह साया कुछ नहीं बोला, बस वहीं खड़ा रहा। समीर ने झट से मोबाइल की टॉर्च जलाई और उस पर डाली। रौशनी पड़ते ही वह साया थोड़ा चौंका, और समीर को उसका चेहरा एक पल के लिए दिखा। वह कोई और नहीं, बल्कि उसी के ऑफिस का एक नया ट्रेनी, विकास था! विकास, जो हमेशा चुपचाप रहता था और किसी से ज़्यादा बात नहीं करता था। समीर को अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ।

"विकास? तुम? तुम यह सब क्यों कर रहे हो?" समीर हैरान और गुस्से में पूछा।

विकास की आँखों में अजीब सी चमक थी। वह धीरे से बोला, "तुमने मुझसे सब कुछ छीन लिया, समीर। मेरी नौकरी, मेरा प्रमोशन... सब कुछ।"

समीर को कुछ समझ नहीं आया। "मैं... मैंने क्या छीना तुमसे? मैंने तो तुम्हें कभी नुकसान पहुँचाने की सोची भी नहीं।"

"तुम नहीं समझोगे," विकास फुसफुसाया। "वह प्रोजेक्ट, जिस पर मैं महीनों से काम कर रहा था, तुमने आखिरी मौके पर अपनी 'सीनियरिटी' दिखाकर उसे अपने नाम कर लिया। बॉस ने तुम्हारी तारीफ की, और मुझे नज़रअंदाज़ कर दिया। मेरा प्रमोशन रुक गया, सिर्फ तुम्हारी वजह से!"

समीर को याद आया। कुछ महीने पहले एक ज़रूरी प्रोजेक्ट था। विकास वाकई उस पर काम कर रहा था, पर आखिरी समय में कुछ बड़ी गलतियाँ कर बैठा था, जिसकी वजह से समीर को हस्तक्षेप करना पड़ा और प्रोजेक्ट को संभालना पड़ा था। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि विकास इस बात को दिल पर ले लेगा और इस हद तक चला गया।

"विकास, तुम गलत समझ रहे हो," समीर ने उसे समझाने की कोशिश की। "मैंने सिर्फ़ कंपनी का नुकसान होने से बचाया था। मेरा इरादा तुम्हें नीचा दिखाना नहीं था।"

"झूठ!" विकास चीखा और जेब से वही जंग लगा चाकू निकाल लिया जो समीर को किचन में मिला था। "तुम जैसे लोग हमेशा दूसरों का हक़ मारकर आगे बढ़ते हैं। आज मैं तुम्हें सबक सिखाऊंगा।"

विकास चाकू लेकर समीर की तरफ लपका। समीर पीछे हटा और डंडे से उसका वार रोकने की कोशिश की। दोनों के बीच हाथापाई शुरू हो गई। चीजें इधर-उधर गिरने लगीं। समीर ने किसी तरह विकास के हाथ से चाकू छुड़ाने की कोशिश की, पर विकास की पकड़ मजबूत थी। तभी समीर को दरवाज़े के पास रखा भारी फूलदान याद आया। उसने एक झटके से विकास को धक्का दिया और फूलदान उठाकर उसकी तरफ फेंका।

फूलदान विकास के कंधे पर लगा और वह दर्द से कराहता हुआ नीचे गिर पड़ा। चाकू उसके हाथ से छूटकर दूर जा गिरा। समीर ने फुर्ती से चाकू उठाया और विकास को पकड़ लिया।

शोर सुनकर पड़ोसी भी जाग गए थे और उन्होंने पुलिस को फोन कर दिया था। कुछ ही देर में पुलिस आ गई और विकास को गिरफ्तार करके ले गई।

अगली सुबह, जब सूरज की पहली किरण समीर के कमरे में दाखिल हुई, तो उसे लगा जैसे बरसों बाद उसने खुली हवा में सांस ली हो। वह "अजनबी साया" अब जा चुका था। पुलिस ने बताया कि विकास मानसिक रूप से थोड़ा अस्थिर था और जलन की भावना ने उसे ऐसा करने पर मजबूर कर दिया था।

उसने सीखा कि कभी-कभी अनजाने में भी हम किसी को इतनी ठेस पहुँचा सकते हैं कि वह खतरनाक कदम उठा सकता है। उसने यह भी समझा कि हर चीज़ का एक तर्कसंगत स्पष्टीकरण होता है, बस उसे खोजने की ज़रूरत होती है।

उसने अपने दोस्त रोहन को फोन किया और सारी बात बताई। रोहन ने उससे माफ़ी मांगी कि उसने समीर की बात पर यकीन नहीं किया था।

कुछ दिनों बाद, समीर ने वह फ्लैट बदल दिया। वह एक नई शुरुआत करना चाहता था, जहाँ कोई "अजनबी साया" उसका पीछा न करे। ज़िंदगी धीरे-धीरे पटरी पर लौटने लगी थी, पर वह रात और विकास का चेहरा वह शायद कभी नहीं भूल पाएगा। यह कहानी उसके लिए हमेशा एक सबक रहेगी।

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