ईमानदार लकड़हारा। Eemandar Lakadhara। Moral Story in Hindi
![]() |
जब उसकी एकमात्र कुल्हाड़ी खो गई । The Honest Woodcutter। Moral Story in Hindi |
मेहनती लकड़हारे का संघर्ष और एक अनहोनी (The Struggle of a Hardworking Woodcutter and an Unfortunate Incident)
घने जंगलों के किनारे बसे एक छोटे से गाँव में समीर नाम का एक लकड़हारा रहता था। समीर अपनी पत्नी और दो प्यारे बच्चों के साथ एक साधारण सी झोपड़ी में अपना जीवन बिता रहा था। वह शरीर से दुबला-पतला था, लेकिन उसके इरादे चट्टान की तरह मजबूत थे। उसकी सबसे बड़ी पूंजी उसकी ईमानदारी और कड़ी मेहनत थी। "ईमानदार लकड़हारा" के रूप में गाँव के लोग उसे जानते थे, क्योंकि वह कभी किसी के साथ बेईमानी नहीं करता था, चाहे हालात कितने भी कठिन क्यों न हों। हर सुबह सूरज की पहली किरण के साथ समीर अपनी पुरानी लेकिन मजबूत कुल्हाड़ी कंधे पर रखकर जंगल की ओर निकल पड़ता। वह रोज़ सूखी और गिरी हुई लकड़ियाँ इकट्ठा करता था, जिन्हें बेचकर वह अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर पाता था।
जंगल घना और कई बार खतरनाक भी होता था। जंगली जानवरों का डर, ऊबड़-खाबड़ रास्ते और मौसम की मार, समीर इन सब का सामना हर रोज़ करता था। उसकी पत्नी अक्सर चिंता में रहती थी, लेकिन समीर उसे हमेशा मुस्कुराकर तसल्ली देता, "ऊपर वाला हमारे साथ है, जब तक हम सच्चाई और मेहनत का रास्ता नहीं छोड़ते तब तक हमारा कुछ बुरा नहीं होगा।" बच्चे भी अपने पिता के लौटने का बेसब्री से इंतज़ार करते थे, क्योंकि वे जानते थे कि उनके पिता उनके लिए कुछ न कुछ खाने की चीज़ या जंगल से कोई अनोखी फूल-पत्ती ज़रूर लेकर आएँगे।
एक दिन, गाँव के पास वाले जंगल में लकड़ियाँ कम मिलने लगीं। समीर को अपने परिवार का पेट पालने की चिंता सताने लगी। उसने फैसला किया कि वह जंगल के उस हिस्से में जाएगा जहाँ पहले कभी कोई लकड़हारा नहीं गया था। नदी के उस पार, जहाँ जंगल और भी घना और सुनसान था। उसकी पत्नी ने उसे रोकने की बहुत कोशिश की, "वह जगह सुरक्षित नहीं है। सुना है वहाँ अजीब शक्तियाँ रहती हैं।" लेकिन समीर ने उसे समझाया, "चिंता मत करो, मैं सावधान रहूँगा। बच्चों के भूखे पेट मुझसे देखे नहीं जाते।"
अगली सुबह, समीर अपनी कुल्हाड़ी और कुछ रोटियाँ लेकर उस अनदेखे जंगल की ओर चल पड़ा। नदी पार करने के लिए एक पुराना, जर्जर लकड़ी का पुल था। सावधानी से पुल पार करके वह घने जंगल में दाखिल हो गया। यहाँ पेड़ ऊँचे-ऊँचे थे और सूरज की रोशनी भी मुश्किल से ज़मीन तक पहुँच पा रही थी। कुछ देर चलने के बाद उसे एक बहुत बड़ा, सूखा पेड़ दिखाई दिया। समीर खुश हो गया, "वाह! इससे तो उसका कई दिनों का काम चल जाएगा।"
उसने अपनी कुल्हाड़ी संभाली और पूरी ताकत से पेड़ के तने पर वार करने लगा। 'खट-खट' की आवाज़ शांत जंगल में गूंजने लगी। पसीना उसकी कनपटियों से बह रहा था, लेकिन उसके चेहरे पर एक संतोष था। वह कल्पना कर रहा था कि इन लकड़ियों को बेचकर वह अपने बच्चों के लिए नए कपड़े और कुछ मिठाई खरीदेगा। कई घंटों की मेहनत के बाद जब पेड़ का एक बड़ा हिस्सा कटने ही वाला था, तभी अचानक एक ज़ोरदार झटका लगा। समीर का पैर पास पड़े एक गीले पत्थर पर फिसला और उसके हाथ से कुल्हाड़ी छूटकर पास बह रही गहरी नदी में जा गिरी – छपाक!
समीर हक्का-बक्का रह गया। उसकी आँखों के सामने अँधेरा छा गया। वह कुल्हाड़ी ही तो उसकी रोज़ी-रोटी का एकमात्र साधन थी। उस कुल्हाड़ी के बिना वह क्या करेगा? परिवार का पेट कैसे पालेगा? वह दौड़कर नदी किनारे पहुँचा। पानी बहुत गहरा और तेज़ बहाव वाला था। उसमें उतरकर कुल्हाड़ी ढूँढना नामुमकिन सा लग रहा था। समीर को तैरना भी अच्छे से नहीं आता था। हताशा में वह वहीं ज़मीन पर बैठ गया और उसके आँसू बह निकले। "हे! ऊपर वाले यह क्या हो गया? अब मैं क्या करूँगा? मेरे बच्चे भूखे रह जाएँगे।" वह अपनी किस्मत को कोसने लगा। उसे लगा जैसे सारी दुनिया का बोझ उसी के कंधों पर आ गया हो। वह कल्पना भी नहीं कर सकता था कि एक "ईमानदार लकड़हारा" होने के बावजूद उसके साथ ऐसा कुछ हो सकता है।
सोने और चांदी की कुल्हाड़ी और ईमानदारी की परीक्षा (Gold and Silver Axes and The Test of Honesty)
समीर नदी किनारे बैठा अपनी बेबसी पर रो रहा था। सूरज ढलने लगा था और जंगल में अंधेरा गहराने लगा था। उसे डर भी लग रहा था, लेकिन अपनी खोई हुई कुल्हाड़ी की चिंता उसे वहाँ से हिलने नहीं दे रही थी। वह मन ही मन प्रार्थना कर रहा था, "हे! जंगल को बनाने वाले मेरे रब, मेरी मदद करो! मेरी कुल्हाड़ी मुझे वापस दिला दो। मैं गरीब हूँ, मेरे बच्चे भूखे हैं।" उसकी आवाज़ में इतनी सच्चाई और दर्द था कि शायद प्रकृति भी द्रवित हो उठी।
तभी, जहाँ उसकी कुल्हाड़ी गिरी थी, वहाँ नदी के पानी में एक अजीब सी हलचल हुई। पानी के बीच से एक सुनहरी आभा निकली और देखते ही देखते एक तेजस्वी स्त्री प्रकट हुई। उनके वस्त्र नदी के जल की तरह निर्मल और चेहरे पर चंद्रमा जैसी शांति थी। उनके हाथों में एक सोने की कुल्हाड़ी चमक रही थी। समीर उन्हें देखकर आश्चर्यचकित और थोड़ा भयभीत भी हो गया। वह समझ गया कि यह कोई साधारण स्त्री नहीं, बल्कि एक सुंदर जलपरी हैं। वह तुरंत खड़ा हो गया।
![]() |
जलपरी और सोने की कुल्हाड़ी । The Honest Woodcutter। Moral Story in Hindi |
जलपरी ने मधुर वाणी में पूछा, "हे! मानव! तुम इतने दुखी क्यों हो? इस सूनसान जगह पर क्या कर रहे हो?"
समीर ने काँपते हुए अपनी सारी बात सुनाई, "हे! जलपरी, मैं एक गरीब लकड़हारा हूँ। लकड़ियाँ काटकर अपने परिवार का पेट पालता हूँ। मेरी एकमात्र लोहे की कुल्हाड़ी इसी नदी में गिर गई। उसके बिना मेरा जीवन अंधकार सा लग रहा हैं।"
जलपरी मुस्कुराईं और अपने हाथ में चमकती सोने की कुल्हाड़ी दिखाते हुए बोलीं, "क्या यह है तुम्हारी कुल्हाड़ी?"
समीर ने उस सोने की कुल्हाड़ी को ध्यान से देखा। वह कितनी सुंदर और कीमती थी। एक पल के लिए उसके मन में लालच आया। अगर वह हाँ कह दे, तो उसकी सारी गरीबी एक झटके में दूर हो जाएगी। वह अपने परिवार को हर सुख-सुविधा दे पाएगा। लेकिन फिर उसे अपनी ईमानदारी और अपने सिद्धांतों की याद आई। उसने अपने पिता से सीखा था कि बेईमानी की कमाई कभी सुख नहीं देती। "ईमानदार लकड़हारा" की जो पहचान उसने बनाई थी, उसे वह खोना नहीं चाहता था।
उसने सिर झुकाकर कहा, "नहीं! जलपरी, यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है। मेरी कुल्हाड़ी तो साधारण लोहे की थी। यह तो सोने की है, इतनी कीमती चीज़ मेरी कैसे हो सकती है?"
जलपरी समीर के जवाब से प्रसन्न हुईं, लेकिन उन्होंने अपनी परीक्षा जारी रखी। उन्होंने सोने की कुल्हाड़ी को ग़ायब किया और फिर एक चाँदी की कुल्हाड़ी प्रकट की, जो सोने की तरह ही चमक रही थी। "तो क्या यह है तुम्हारी कुल्हाड़ी?" उन्होंने पूछा।
समीर ने चाँदी की कुल्हाड़ी को देखा। यह भी बहुत सुंदर और मूल्यवान थी। उसके मन में फिर वही सवाल उठा। एक तरफ गरीबी से मुक्ति का सुनहरा सपना, दूसरी तरफ उसकी आत्मा की आवाज़ जो उसे सच्चाई के रास्ते पर चलने को कह रही थी। उसने गहरी सांस ली और दृढ़ता से कहा, "नहीं! जलपरी, यह भी मेरी कुल्हाड़ी नहीं है। यह चाँदी की है, मेरी तो लोहे की थी।"
अब जलपरी के चेहरे पर एक दिव्य मुस्कान फैल आ गई। उन्होंने चाँदी की कुल्हाड़ी को भी गायब कर दी और फिर पानी से समीर की वही पुरानी, साधारण सी लोहे की कुल्हाड़ी निकाली, जिसका लकड़ी का हत्था भी थोड़ा घिस चुका था। "तो क्या यह है तुम्हारी कुल्हाड़ी?" जलपरी ने स्नेह से पूछा।
अपनी कुल्हाड़ी देखते ही समीर की आँखें खुशी से चमक उठीं। वह उत्साह से बोला, "हाँ, हाँ जलपरी! यही है मेरी कुल्हाड़ी! आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!" उसके चेहरे पर जो संतोष और खुशी थी, वह सोने या चाँदी की कुल्हाड़ी देखकर भी नहीं आई थी। वह अपनी मेहनत की कमाई के साधन को पाकर बहुत ख़ुशी महसूस कर रहा था। उसे इस बात की परवाह नहीं थी कि उसने दो कीमती अवसर गंवा दिए, उसे बस अपनी "ईमानदार लकड़हारा" की पहचान बनाए रखने की खुशी थी।
ईमानदारी का फल (The Fruit of Honesty)
समीर की निःस्वार्थता और अटूट ईमानदारी देखकर जलपरी बहुत प्रसन्न हुईं। उनके चेहरे पर एक दिव्य तेज चमक रही थी। उन्होंने बहुत प्यार से समीर से कहा, "हे! लकड़हारे, मैं तुम्हारी सच्चाई और ईमानदारी से बहुत खुश हुई हूँ। इस युग में जहाँ लोग थोड़े से लाभ के लिए भी झूठ और फरेब का सहारा लेने से नहीं हिचकते, तुमने सोने और चाँदी जैसी मूल्यवान वस्तुओं का लालच त्यागकर अपनी साधारण सी लोहे की कुल्हाड़ी को ही चुना। तुम्हारी यह ईमानदारी वास्तव में प्रशंसनीय है।"
जलपरी ने आगे कहा, "तुम एक सच्चे "ईमानदार लकड़हारा" हो। तुम्हारी परीक्षा लेने के लिए ही मैंने यह सब किया था। तुम इस परीक्षा में खरे उतरे हो। इसलिए, तुम्हारी इस लोहे की कुल्हाड़ी के साथ-साथ, यह सोने की कुल्हाड़ी और यह चाँदी की कुल्हाड़ी भी मैं तुम्हें पुरस्कार स्वरूप देती हूँ।" इतना कहकर जलपरी ने तीनों कुल्हाड़ियाँ समीर के हाथों में थमा दीं।
![]() |
जलपरी ने समीर को तीनों कुल्हाड़ियाँ दीं । The Honest Woodcutter। Moral Story in Hindi |
समीर भौचक्का रह गया। उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। उसकी आँखों में खुशी के आँसू छलक आए। यह तुम्हारी ईमानदारी का फल है। जाओ, इन कुल्हाड़ियों का उपयोग करना और हमेशा सच्चाई के मार्ग पर चलते रहना। याद रखना, ईमानदारी ही सबसे बड़ी दौलत है।" इतना कहकर वह जलपरी पानी में गायब हो गईं, जैसे वह कभी थीं ही नहीं।
समीर कुछ देर तक वहीं खड़ा रहा। उसके हाथों में तीन कुल्हाड़ियाँ थीं – एक लोहे की, एक चाँदी की और एक सोने की। उसे समझ आ गया था कि ईमानदारी का रास्ता कठिन हो सकता है, लेकिन उसका फल हमेशा मीठा और हमेशा रहने वाला होता है। उसने जलपरी को मन ही मन धन्यवाद दिया और खुशी-खुशी अपने घर की ओर चल पड़ा।
जब वह घर पहुँचा, तो उसकी पत्नी और बच्चे उसे देखकर हैरान रह गए। सोने और चाँदी की कुल्हाड़ियाँ देखकर उनकी आँखें फटी की फटी रह गईं। समीर ने उन्हें पूरी घटना विस्तार से सुनाई। उसकी पत्नी की आँखों में अपने पति के लिए गर्व और खुशी के आँसू थे। बच्चों ने भी अपने पिता की ईमानदारी की कहानी सुनी और उनसे बहुत कुछ सीखा।
समीर ने सोने और चाँदी की कुल्हाड़ियों को बेचकर कुछ अच्छी ज़मीन खरीदी और खेती करने लगा। उसने अपनी लोहे की कुल्हाड़ी से मेहनत करना नहीं छोड़ा। उसने अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दी और गाँव में कई जरूरतमंदों की मदद भी की। वह पहले की तरह ही विनम्र और मेहनती बना रहा। दूर-दूर तक "ईमानदार लकड़हारा समीर" की कहानी फैल गई। लोग उससे प्रेरणा लेने लगे और समझने लगे कि ईमानदारी में कितनी शक्ति होती है।
हमें उम्मीद है कि "ईमानदार लकड़हारा समीर" की यह कहानी आपको पसंद आई होगी और इससे आपको जीवन की एक महत्वपूर्ण सीख मिली होगी।
आपको यह कहानी कैसी लगी? क्या समीर के किसी गुण ने आपको सबसे ज़्यादा प्रभावित किया? अपने विचार नीचे कमेंट बॉक्स में लिखकर हमें ज़रूर बताएं!
इस प्रेरणादायक कहानी को अपने दोस्तों, परिवार और बच्चों के साथ शेयर करें। ज्ञान बांटने से बढ़ता है, और हो सकता है यह कहानी किसी के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाए।
Comments
Post a Comment