कोठी नंबर 13। Kothi No. 13। Hindi Kahani

कोठी नंबर 13। Kothi No. 13। Kahani Hindi

कोठी नंबर 13 का रहस्य - बच्चों और बड़ों के लिए हिंदी कहानी
शाम के साये में लिपटी कोठी नंबर 13 – डर या सिर्फ वहम । Hindi Kahani

सालो पुरानी बंद कोठी नंबर 13 का राज़ (The Secret of The Years Old Closed House Number 13)

शहर की भागदौड़ और शोरगुल से दूर, पहाड़ों की गोद में बसा एक छोटा सा, शांत गाँव था रामपुर। इसी गाँव के बाहरी छोर पर, घने पेड़ों और झाड़ियों के बीच, एक पुरानी, वीरान-सी कोठी खड़ी थी - कोठी नंबर 13। गाँव वालों के लिए यह कोठी किसी रहस्य से कम नहीं थी। दशकों से बंद पड़ी इस कोठी के बारे में तरह-तरह की डरावनी कहानियाँ मशहूर थीं। कोई कहता कि इसमें एक अमीर जमींदार की आत्मा भटकती है जिसे उसके नौकरों ने दौलत के लिए मार डाला था, तो कोई कहता कि रात के अंधेरे में कोठी से अजीबोगरीब आवाजें आती हैं और कभी-कभी तो रोशनी भी टिमटिमाती दिखती है। इन कहानियों ने कोठी नंबर 13 को गाँव में एक खौफ का प्रतीक बना दिया था। सूरज ढलने के बाद कोई भी उस कोठी के पास से गुजरने की हिम्मत नहीं करता था, और बच्चे तो दिन में भी उस तरफ जाने से डरते थे।

रणवीर, एक पढ़ा-लिखा, आधुनिक सोच वाला नौजवान था। वह शहर में एक अच्छी नौकरी करता था, लेकिन कुछ समय के लिए अपने दादा-दादी से मिलने रामपुर आया हुआ था। बचपन में उसने भी कोठी नंबर 13 की कहानियाँ सुनी थीं, लेकिन तब वह उन्हें बच्चों का मन बहलाने वाली बातें समझता था। अब, जब वह बड़ा हो गया था और गाँव लौटा था, तो उसने देखा कि गाँव वालों का डर आज भी वैसा ही था। रणवीर को इन बातों पर यकीन नहीं होता था। उसका मानना था कि हर चीज के पीछे कोई न कोई कारण जरूर होता है।

एक शाम, जब रणवीर गाँव के बड़े-बुजुर्गों के साथ चौपाल पर बैठा था, तो बात घूम-फिरकर कोठी नंबर 13 पर आ गई। सरपंच जी ने गंभीर आवाज़ में कहा, "रणवीर बेटा, तुम शहर से आए हो, इन बातों को नहीं मानोगे, लेकिन सच तो यह है कि उस कोठी में कुछ तो गड़बड़ है। हमारे बाप-दादा भी यही कहते थे।" एक और बुजुर्ग ने अपनी झुर्रियों वाली आँखों से रणवीर को देखते हुए कहा, "हाँ! बेटा, कई बार लोगों ने वहाँ अजीब परछाइयाँ देखी हैं। बेहतर है कि तुम भी उस तरफ न जाओ।"

रणवीर उनकी बातें ध्यान से सुन रहा था, पर उसके मन में जिज्ञासा और बढ़ गई थी। वह जानना चाहता था कि आखिर इस कोठी नंबर 13 का सच क्या है? क्या वाकई वहाँ कोई भूत-प्रेत है? या यह सिर्फ गाँव वालों का वहम है? उसने फैसला किया कि वह इस रहस्य से पर्दा उठाकर रहेगा। उसने बुजुर्गों से पूछा, "क्या कभी किसी ने अंदर जाकर देखने की कोशिश की?"

सरपंच जी ने कहा, "अरे! बेटा, जान प्यारी किसे नहीं होती? कौन मौत के मुँह में जाना चाहेगा?"

अगले दिन, रणवीर ने दूर से कोठी नंबर 13 का जायजा लिया। कोठी वाकई बहुत पुरानी और जर्जर हालत में थी। उसकी दीवारें जगह-जगह से उखड़ चुकी थीं, खिड़कियों के शीशे टूटे हुए थे, और मुख्य दरवाज़े पर एक भारी-भरकम ताला लटक रहा था, जिस पर सालों की धूल और जंग की परत जमी हुई थी। कोठी के चारों ओर जंगली घास और झाड़ियाँ इतनी बढ़ गई थीं कि रास्ता सही से नहीं दिख पा रहा था। देखने में वह जगह वाकई थोड़ी डरावनी लगती थी, लेकिन रणवीर के मन में डर से ज़्यादा अंदर देखने की उत्सुकता थी।

उसने गाँव के कुछ हमउम्र लड़कों से बात करने की कोशिश की, लेकिन कोठी नंबर 13 का नाम सुनते ही सब पीछे हट गए। किसी ने कहा, "रणवीर भाई, क्यों अपनी जान जोखिम में डाल रहे हो?" तो किसी ने सलाह दी, "वह जगह ठीक नहीं है, वहाँ मत जाओ।"

रणवीर समझ गया था कि इस काम में उसे अकेले ही आगे बढ़ना होगा। उसने मन ही मन योजना बनानी शुरू कर दी। वह दिन के उजाले में कोठी के आसपास का मुआयना करना चाहता था ताकि रात के अंधेरे में कोई अनहोनी न हो। उसके दिल में एक अजीब-सी बेचैनी थी, लेकिन साथ ही एक रोमांच भी था - कोठी नंबर 13 के रहस्य को सुलझाने का रोमांच। उसने तय कर लिया था कि वह गाँव वालों के मन से इस डर को निकालकर रहेगा। शाम ढलते ही रणवीर अपने कमरे में लौट आया, उसके दिमाग में बस कोठी नंबर 13 और उससे जुड़े सवाल ही घूम रहे थे। उसने कुछ ज़रूरी सामान, जैसे टॉर्च, पानी की बोतल और एक छोटा चाकू अपने बैग में रख लिया। उसकी धड़कनें तेज़ थीं, लेकिन इरादे मज़बूत थे।
 



 

आखिर कोठी नंबर 13 का सच सामने आ गया (At Last The Truth of Kothi No. 13 Has Come Out)


अगली सुबह, सूरज की पहली किरण के साथ ही रणवीर की आँख खुल गई। रात भर उसके सपनों में भी कोठी नंबर 13 ही घूमती रही थी। नाश्ता करने के तुरंत बाद, उसने अपने दादा-दादी को बताया कि वह गाँव के आसपास टहलने जा रहा है, ताकि उन्हें कोई शक न हो। उसने अपना छोटा-सा बैग उठाया और गाँव के उस छोर की तरफ चल पड़ा जहाँ कोठी नंबर 13 थी। जैसे-जैसे वह कोठी के करीब पहुँचता गया, हवा में एक अजीब-सी नमी और सन्नाटा महसूस होने लगा। चिड़ियों की चहचहाहट भी कम हो गई थी, ऐसा लग रहा था कि मानो वे भी उस जगह से डरती हों।

कोठी के मैन फाटक पर पहुँचकर रणवीर एक पल के लिए रुका। ताला वाकई बहुत पुराना और मज़बूत लग रहा था। उसने चारों ओर नज़र दौड़ाई, शायद कोई और रास्ता अंदर जाने का मिल जाए। कोठी की चारदीवारी भी काफी ऊँची थी, लेकिन एक जगह से वह थोड़ी टूटी हुई थी। रणवीर ने उसी जगह से अंदर जाने का फैसला किया। थोड़ी मशक्कत के बाद वह दीवार फांदकर कोठी के अहाते में दाखिल हो गया। अंदर का दृश्य और भी वीरान था। सूखी पत्तियाँ हर तरफ बिखरी पड़ी थीं, और जंगली पौधों ने पूरे बागीचे को अपनी चपेट में ले लिया था। एक पल के लिए रणवीर को भी अजीब-सा लगा, जैसे वह किसी दूसरी दुनिया में आ गया हो।

रणवीर और दीनानाथ कोठी नंबर 13 के अंदर - सच्ची हिंदी कहानी
अंधेरे में छिपी सच्चाई, कोठी नंबर 13 का असली चेहरा । Hindi Kahani

उसने हिम्मत जुटाई और कोठी के मुख्य भवन की ओर बढ़ा। दरवाज़ा अंदर से बंद था, लेकिन खिड़कियाँ टूटी हुई थीं। उसने एक बड़ी खिड़की से अंदर झाँका। अंदर घना अंधेरा था और धूल की मोटी परत हर चीज़ पर जमी हुई थी। उसने अपनी टॉर्च निकाली और उसकी रोशनी में अंदर का नज़ारा देखने लगा। एक बड़ा-सा हॉल, पुरानी लकड़ी का फर्नीचर जो अब दीमक का घर बन चुका था, दीवारों पर लटकी फीकी पड़ चुकी तस्वीरें - सब कुछ कोठी नंबर 13 की कहानी बयां कर रहा था।

रणवीर ने खिड़की के टूटे हुए हिस्से से बड़ी सावधानी से अंदर कदम रखा। उसके जूतों के नीचे सूखी पत्तियों और काँच के टुकड़ों की चरमराने की आवाज़ उस गहरे सन्नाटे में बहुत तेज़ लग रही थी। हॉल से जुड़े कई कमरे थे। वह एक-एक करके कमरों में झाँकने लगा। हर जगह वही वीरानी और धूल थी। तभी, एक कमरे से उसे कुछ खटकने की आवाज़ सुनाई दी। रणवीर चौंकन्ना हो गया। क्या गाँव वालों की बातें सच थीं? क्या सच में कोठी नंबर 13 में कोई है?

उसने धीरे से उस कमरे का दरवाज़ा धकेला, दरवाज़ा चरमराते हुए खुला। अंदर ज़्यादा अंधेरा नहीं था, क्योंकि छत का एक हिस्सा टूटा हुआ था और वहाँ से हल्की रोशनी आ रही थी। कमरे के एक कोने में, फटे-पुराने कपड़ों में लिपटा एक बूढ़ा आदमी बैठा था। वह बहुत कमज़ोर और डरा हुआ लग रहा था। रणवीर को देखकर उसकी आँखों में खौफ तैर गया।

रणवीर ने प्यार से कहा, "बाबा, डरो मत। मैं तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुँचाऊँगा। तुम कौन हो? और यहाँ इस कोठी नंबर 13 में अकेले क्या कर रहे हो?"

बूढ़े आदमी ने काँपती आवाज़ में कहा, "मैं... मैं यहीं रहता हूँ।"

रणवीर हैरान था। "लेकिन गाँव वाले तो कहते हैं कि यह कोठी सालों से वीरान है और यहाँ भूत रहते हैं।"

बूढ़े आदमी की आँखों में आँसू आ गए। उसने कहा, "बेटा! भूत कोई नहीं है। भूत तो लोगों के मन का वहम है। मैं ही वह 'भूत' हूँ जिससे सब डरते हैं।"

रणवीर को कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसने बूढ़े आदमी के पास बैठकर उससे पूरी बात जाननी चाही। बूढ़े आदमी ने बताया कि उसका नाम दीनानाथ है और वह इसी कोठी नंबर 13 का पुराना नौकर है। जब कोठी के मालिक शहर चले गए, तो उन्होंने दीनानाथ को कोठी की देखभाल के लिए यहीं छोड़ दिया। कुछ सालों तक तो सब ठीक रहा, लेकिन फिर मालिक ने आना-जाना बिल्कुल बंद कर दिया और पैसे भेजने भी बंद कर दिए। दीनानाथ के पास गाँव में कोई और ठिकाना नहीं था, इसलिए वह इसी कोठी में छिपकर रहने लगा। गाँव वालों ने जब कभी उसे रात में कोठी के आसपास देखा या कोई आवाज़ सुनी, तो उन्होंने उसे भूत समझ लिया और कोठी नंबर 13 के बारे में डरावनी कहानियाँ बना लीं। दीनानाथ भी लोगों से डरकर और छिपकर रहने लगा, ताकि कोई उसे परेशान न करे।

रणवीर को दीनानाथ की कहानी सुनकर बहुत दुःख हुआ। उसे समझ में आ गया कि कोठी नंबर 13 का असली रहस्य डर या भूत नहीं, बल्कि अकेलापन, गरीबी और समाज की उदासीनता हैं।

 



आखिरकार समस्या का समाधान हो ही गया (Finally The Problem Was Solved)

रणवीर ने दीनानाथ की पूरी कहानी बड़े ध्यान से सुनी। उसे इस बात का गहरा अफ़सोस हुआ कि कैसे एक बेसहारा बूढ़े आदमी को गाँव वालों ने बिना सच्चाई जाने भूत समझ लिया और कोठी नंबर 13 को एक डरावनी जगह घोषित कर दिया। दीनानाथ की आँखों में बेबसी और डर साफ झलक रहा था। उसने बताया कि वह दिन में कोठी के अंदर ही छिपा रहता था और रात के अंधेरे में चुपके से पास के जंगल से फल या कंद-मूल ले आता था, या कभी-कभी गाँव के बाहर फेंके गए खाने से अपना पेट भरता था। उसकी हालत देखकर रणवीर का दिल भर आया।

"बाबा, आपको इस तरह छिपकर रहने की ज़रूरत नहीं है," रणवीर ने सहानुभूति से कहा। "मैं गाँव वालों से बात करूँगा और उन्हें सच्चाई बताऊँगा।"

दीनानाथ डर गया। "नहीं बेटा, ऐसा मत करना। वे लोग मुझे मार डालेंगे या यहाँ से भगा देंगे। मैं कहाँ जाऊँगा इस बुढ़ापे में?"

रणवीर ने उसे भरोसा दिलाया, "आप चिंता मत कीजिये, बाबा! मैं सब संभाल लूँगा। अब आपको और तकलीफ नहीं उठानी पड़ेगी। कोठी नंबर 13 अब आपके लिए डर की नहीं, बल्कि सहारे की जगह बनेगी।"

रणवीर, दीनानाथ और गांववाले खुश - प्रेरणादायक हिंदी कहानी
अब नहीं रही डरावनी कोठी नंबर 13, बनी सहयोग की मिसाल । Hindi Kahani

रणवीर ने सबसे पहले दीनानाथ के लिए कुछ खाने-पीने का इंतजाम किया। वह चुपके से अपने घर से खाना और पानी ले आया। फिर उसने कोठी के उस कमरे की थोड़ी सफाई की जहाँ दीनानाथ रहता था। उसने दीनानाथ से वादा किया कि वह जल्द ही कोई स्थायी समाधान निकालेगा।

अगले दिन रणवीर ने गाँव के सरपंच और कुछ समझदार बुजुर्गों को इकट्ठा किया। उसने उन्हें कोठी नंबर 13 के 'भूत' की सच्चाई बताई। शुरू में तो किसी को यकीन नहीं हुआ। वे रणवीर की बातों को उसकी नादानी समझ रहे थे। कुछ ने तो यहाँ तक कह दिया कि रणवीर पर भी कोठी नंबर 13 के साये का असर हो गया है।

लेकिन रणवीर ने हार नहीं मानी। उसने सरपंच से अनुरोध किया, "सरपंच जी, मैं आपसे बस इतना चाहता हूँ कि आप एक बार मेरे साथ कोठी नंबर 13 चलकर खुद अपनी आँखों से सच्चाई देख लें। अगर मेरी बात गलत निकली, तो आप जो सज़ा देंगे, मुझे मंजूर होगी।"

रणवीर के आत्मविश्वास और उसकी बातों में सच्चाई देखकर सरपंच जी और कुछ अन्य लोग उसके साथ जाने को तैयार हो गए। जब वे लोग कोठी के अंदर पहुँचे और दीनानाथ को उस दयनीय हालत में देखा, तो उनकी आँखें फटी रह गईं। दीनानाथ डर के मारे काँप रहा था। रणवीर ने आगे बढ़कर उसे सहारा दिया और सरपंच जी से मिलवाया।

दीनानाथ ने अपनी सारी आपबीती उन लोगों को सुनाई। गाँव वाले, जो सालों से कोठी नंबर 13 के नाम से डरते थे, आज सच्चाई जानकर शर्मिंदा थे। उन्हें अपनी गलती का एहसास हो रहा था कि कैसे उन्होंने बिना जाने-समझे एक बेसहारा इंसान को भूत बना दिया था।

सरपंच जी ने दीनानाथ से माफी मांगी और कहा, "दीनानाथ काका, हमें माफ कर दीजिये। हमने अनजाने में आपको बहुत कष्ट दिया।"

इसके बाद गाँव वालों ने मिलकर कोठी नंबर 13 की सफाई करने का फैसला किया। कोठी के मालिक से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन उनका कुछ पता नहीं चला। तब गाँव वालों ने मिलकर यह तय किया कि दीनानाथ काका अब से कोठी नंबर 13 में ही रहेंगे और गाँव वाले मिलकर उनकी देखभाल करेंगे। कोठी के एक हिस्से को रहने लायक बनाया गया। अब दीनानाथ को छिपकर नहीं रहना पड़ता था। गाँव के बच्चे भी अब कोठी नंबर 13 से नहीं डरते थे, बल्कि दीनानाथ काका से कहानियाँ सुनने आते थे।

रणवीर ने अपनी सूझबूझ और साहस से न सिर्फ एक रहस्य से पर्दा उठाया, बल्कि एक बेसहारा इंसान को सम्मान और सहारा भी दिलाया। कोठी नंबर 13, जो कभी डर और वहम का प्रतीक थी, अब गाँव में मानवीयता और सहयोग की मिसाल बन गई थी।

 

नैतिक शिक्षा (Moral Education)

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सुनी-सुनाई बातों पर आँख बंद करके विश्वास नहीं करना चाहिए। किसी भी चीज़ या व्यक्ति के बारे में राय बनाने से पहले सच्चाई जानना बहुत ज़रूरी है। डर अक्सर अज्ञानता से पैदा होता है, और समझदारी एवं साहस से हम बड़े से बड़े वहम को दूर कर सकते हैं। साथ ही, हमें बेसहारा और ज़रूरतमंद लोगों की मदद करनी चाहिए, क्योंकि सच्ची मानवता इसी में है।

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