स्कूल का तीसरा कमरा | The Third Room of the School | Suspense Thriller Story in Hindi

स्कूल का तीसरा कमरा । School Ka Tisra Kamra  Suspense Thriller Story in Hindi

तीन बच्चे - समीर, रोहन और प्रिया, स्कूल के रहस्यमयी तीसरे कमरे के पुराने, बंद दरवाज़े के पास खड़े हैं और उत्सुकता से उसे देख रहे हैं।
स्कूल का वो बदनाम कमरा | The Third Room of the School  | Suspense Thriller Story in Hindi

सालों पुराना स्कूल का बंद कमरा । Years of Old School Closed Room

समीर एक होशियार लड़का था, जो शहर के सबसे पुराने स्कूलों में से एक, "ज्ञानोदय पब्लिक स्कूल" में पढ़ता था। स्कूल की बिल्डिंग बहुत बड़ी और पुरानी थी, जिसकी हर ईंट में कोई न कोई कहानी छिपी हुई थी। लेकिन एक कहानी ऐसी थी, जो सिर्फ फुसफुसाहटों में सुनाई जाती थी - स्कूल का तीसरा कमरा।

यह कमरा स्कूल की सबसे ऊपरी, यानी तीसरी मंजिल के आखिरी कोने में था। इस पर हमेशा एक बड़ा-सा भारी और ज़ंग लगा ताला लटका रहता था। किसी भी स्टूडेंट या टीचर को वहाँ जाने की इजाज़त नहीं थी। स्कूल के बच्चे इस कमरे के बारे में तरह-तरह की बातें करते थे। कुछ कहते थे कि सालों पहले वहाँ एक बच्चा गायब हो गया था, तो कुछ का मानना था कि उस कमरे में किसी नाराज़ आत्मा का वास है।

समीर को इन बातों पर यकीन तो नहीं था, लेकिन उसके मन में उस कमरे को लेकर एक अजीब-सी बेचैनी रहती थी। वह अक्सर सोचता था, "आखिर उस बंद दरवाज़े के पीछे ऐसा क्या है, जिसे सबसे छिपाया जा रहा है?"

एक दिन लंच ब्रेक में समीर और उसके दो सबसे अच्छे दोस्त रोहन और प्रिया, उसी कॉरिडोर के पास क्रिकेट खेल रहे थे। अचानक समीर ने शॉट मारा और गेंद लुढ़कती हुई सीधे तीसरे कमरे के दरवाज़े से जा टकराई।

"अरे नहीं! अब क्या होगा?" प्रिया घबराकर बोली।

स्कूल का चौकीदार, बहादुर काका, बहुत सख्त था। अगर उसे पता चलता, तो वह ज़रूर प्रिंसिपल से शिकायत कर देता। तीनों दोस्त दबे पाँव उस दरवाज़े की ओर बढ़े। जैसे ही समीर गेंद उठाने के लिए झुका, उसे दरवाज़े के अंदर से एक बहुत ही धीमी सी किसी चीज को खुरचने जैसी आवाज़ सुनाई दी। जैसे कोई अपने नाख़ूनों से लकड़ी को खुरच रहा हो।

समीर ने डरते हुए अपने दोस्तों की तरफ देखा। रोहन ने पूछा, "क्या हुआ? इतना डरा हुआ क्यों है?"

"अंदर...अंदर कोई है", समीर ने काँपती आवाज़ में कहा।

तीनों ने कान लगाकर सुनने की कोशिश की, लेकिन अब कोई आवाज़ नहीं आ रही थी। शायद यह सिर्फ समीर का वहम था। वे जल्दी से गेंद उठाकर वहाँ से भाग गए, लेकिन वह आवाज़ समीर के दिमाग में अटक गई थी। उस दिन के बाद, उसकी जानने की इच्छा डर पर हावी हो गई। उसने फैसला कर लिया कि वह स्कूल के तीसरे कमरे का राज़ जानकर ही रहेगा।

शाम को घर जाते समय समीर ने रोहन और प्रिया से कहा, "हमें उस कमरे के अंदर जाना होगा। मुझे पता लगाना है कि वहाँ क्या है।"

रोहन, जो हमेशा मज़ाक के मूड में रहता था, बोला -"क्या तू पागल हो गया है? अगर पकड़े गए तो स्कूल से निकाल दिए जाएँगे।"

लेकिन प्रिया, जो समीर की तरह ही साहसी थी - बोली, "मैं समीर के साथ हूँ। डर के आगे ही तो जीत होती है, है ना समीर?"

बहुत समझाने के बाद रोहन भी मान गया। उन्होंने एक प्लान बनाया। कल स्कूल खत्म होने के बाद वे तीनों स्पोर्ट्स रूम में छिप जाएँगे और जब पूरा स्कूल खाली हो जाएगा, तब वे उस कमरे का ताला खोलने की कोशिश करेंगे।

अगले दिन उनका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। आज रात, वे स्कूल के सबसे बड़े राज़ का सामना करने वाले थे। क्या वे कामयाब हो पाएँगे? या फिर वे किसी ऐसी मुसीबत में फँस जाएँगे, जिससे निकलना नामुमकिन होगा?
 



 

स्कूल के तीसरे कमरे के अंदर फँसे हुए डरे बच्चे, समीर, रोहन और प्रिया, एक चादर के नीचे से आती रहस्यमयी नीली रोशनी को देख रहे हैं।
चादर के नीचे से ये नीली रोशनी | The Third Room of the School  | Suspense Thriller Story in Hindi

बंद दरवाज़ों के पीछे क्या मिला? । What Was Found Behind Closed Door? 

जैसे ही स्कूल की आखिरी घंटी बजी, बच्चों का शोर धीरे-धीरे शांत होने लगा। समीर, रोहन और प्रिया अपने प्लान के मुताबिक स्पोर्ट्स रूम में रखे पुराने मैट्स के पीछे छिप गए। उनका दिल किसी तूफ़ान की तरह धड़क रहा था। बाहर से बहादुर काका के कदमों की आवाज़ और दरवाज़े बंद करने की खट-पट सुनाई दे रही थी। लगभग एक घंटे बाद, जब स्कूल में पूरी तरह सन्नाटा पसर गया, तो वे बाहर निकले।

स्कूल रात में बिल्कुल अलग दिखता था। दिन में जिस जगह बच्चों की हँसी गूँजती थी, अब वहाँ एक अजीब-सी खामोशी थी। दीवारों पर लगी परछाइयाँ भी डरावनी लग रही थीं।

"मुझे अब भी लगता है कि यह अच्छा आईडिया नहीं है", रोहन ने फुसफुसाते हुए कहा।

"चुप रहो और चलते रहो", प्रिया ने उसे हिम्मत दी।

वे दबे पाँव सीढ़ियाँ चढ़कर तीसरी मंजिल पर पहुँचे। वह कॉरिडोर धूल और जालों से भरा हुआ था। हवा में एक अजीब-सी सीलन जैसी गंध महसूस हो रही थी। सामने ही वह बदनाम दरवाज़ा था - स्कूल का तीसरा कमरा। उस पर ज़ंग लगा ताला मानो जैसे  उन्हें घूर रहा था।

रोहन अपने साथ एक पुराना हेयरपिन लाया था, जो उसने फिल्मों में देखकर ताला खोलने के लिए उठाया था। उसने काँपते हाथों से पिन को ताले में डाला और घुमाने लगा। कुछ मिनटों की मशक्कत के बाद, एक 'क्लिक' की हल्की-सी आवाज़ आई और ताला खुल गया।

तीनों ने एक-दूसरे को हैरानी और जीत की नज़र से देखा। समीर ने गहरी साँस ली और धीरे-से दरवाज़े को धक्का दिया। दरवाज़ा एक पुरानी, डरावनी 'चर्रर्र' की आवाज़ के साथ खुला।

कमरे के अंदर घना अँधेरा था। समीर ने अपनी छोटी-सी टॉर्च जलाई। रोशनी पड़ते ही जो नज़ारा दिखा, वह उनकी कल्पना से बिल्कुल अलग था। कमरे में कोई भूत या कंकाल नहीं था, बल्कि वह किसी पुरानी साइंस लैब जैसा लग रहा था। चारों तरफ पुरानी टेस्ट ट्यूब्स, टूटे हुए बीकर, धूल जमी हुई किताबें और दीवारों पर जानवरों और इंसानी शरीर के फटे-पुराने चार्ट लगे थे।

लेकिन कमरे के बीचों-बीच एक बड़ी-सी चीज़ थी, जिसे एक सफेद चादर से ढका गया था। वह किसी बड़ी मशीन जैसी लग रही थी।

"यह सब क्या है?" प्रिया ने हैरानी से पूछा।

"मुझे नहीं पता, पर यह डरावना तो बिल्कुल नहीं है", समीर ने कहा और उस बड़ी-सी मशीन की तरफ बढ़ा। उसकी जिज्ञासा चरम पर थी। वह जानना चाहता था कि उस चादर के नीचे क्या छिपा है।

जैसे ही समीर ने चादर का कोना पकड़ा, उसे हटाने के लिए तो....धड़ाम!

एक ज़ोरदार आवाज़ के साथ कमरे का भारी दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया। टॉर्च की रोशनी में उन्होंने देखा कि दरवाज़ा बाहर से बंद हुआ है। वे अंदर फँस चुके थे।

रोहन डर के मारे चीखने ही वाला था कि प्रिया ने उसके मुँह पर हाथ रख दिया। "चुप! बहादुर काका सुन लेंगे।"

अब कमरे में सिर्फ उनकी साँसों की आवाज़ थी और घना अँधेरा था। उनकी हिम्मत जवाब दे रही थी। वे उस रहस्यमयी कमरे में कैद हो चुके थे और बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं था। तभी, उस सफेद चादर के नीचे से एक हल्की-सी, नीले रंग की रोशनी जलने-बुझने लगी।
 



 

रिटायर्ड टीचर वर्मा सर स्कूल के तीसरे कमरे में समीर, रोहन और प्रिया को अपना अद्भुत 3D सोलर सिस्टम प्रोजेक्टर दिखा रहे हैं, बच्चे आश्चर्य से देख रहे हैं।
पूरे कमरे को अंतरिक्ष बना दिया | The Third Room of the School  | Suspense Thriller Story in Hindi

कमरे में मिली अंतरिक्ष की दुनिया । The World of Space Found in the Room

दरवाज़ा बंद होते ही तीनों बच्चों की हालत खराब हो गई। वे पूरी तरह से फँस चुके थे। तभी, उस चादर से ढकी मशीन से निकलती नीली रोशनी ने उनका ध्यान खींचा। डर और जिज्ञासा के बीच, समीर धीरे-धीरे उस मशीन की ओर बढ़ा। उसने हिम्मत करके चादर को एक झटके में खींच दिया।

चादर हटते ही वे हैरान रह गए। नीचे कोई डरावनी चीज़ नहीं, बल्कि तारों और सर्किट से बनी एक अजीब-सी मशीन थी। उसके बीच में एक प्रोजेक्टर जैसा लेंस लगा हुआ था, जिससे नीली रोशनी निकल रही थी।

"यह... यह तो किसी तरह का प्रोजेक्टर जैसा लग रहा है" - प्रिया ने कहा।

तभी, कमरे के एक कोने में रखे पुराने बक्सों के पीछे से किसी के खाँसने की आवाज़ आई। मानो तीनों की जान ही निकल गई हो। वे डर से एक-दूसरे से चिपक गए। अँधेरे में से एक बूढ़ी और काँपती हुई आवाज़ आई, "डरो मत बच्चों।"

टॉर्च की रोशनी उस दिशा में घुमाते ही उन्होंने देखा कि एक बूढ़े आदमी, जो स्कूल के पुराने साइंस टीचर, वर्मा सर थे, वहाँ बैठे थे। वर्मा सर पिछले साल ही रिटायर हुए थे।

"वर्मा सर! आप यहाँ?" समीर ने हैरानी से पूछा।

वर्मा सर धीरे-धीरे मुस्कुराए। "हाँ बेटा! , यह मेरा गुप्त अड्डा है।" उन्होंने बताया कि यह कमरा सालों से उनकी पर्सनल लैब थी। वह यहाँ एक खास प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे - एक 3D सोलर सिस्टम प्रोजेक्टर, जो बच्चों को अंतरिक्ष के रहस्यों को आसानी से समझा सके। स्कूल मैनेजमेंट ने उन्हें फंड देने से मना कर दिया था, इसलिए वे रिटायर होने के बाद भी चुपके से यहाँ आते थे। बहादुर काका को सब पता था और वह उनकी मदद करते थे।

उन्होंने बताया, "जो खुरचने की आवाज़ तुमने सुनी थी, वो शायद चूहों की थी। और यह दरवाज़ा हवा के झोंके से बंद हो गया होगा।"

बच्चों को अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने न सिर्फ स्कूल का नियम तोड़ा, बल्कि वर्मा सर को भी परेशान किया। उन्होंने तुरंत उनसे माफ़ी माँगी।

वर्मा सर ने उन्हें माफ कर दिया और अपनी मशीन चालू करके दिखाई। देखते ही देखते, कमरे की दीवारों और छत पर अरबों तारे, घूमते हुए ग्रह और चमकते हुए सूरज दिखने लगे। ऐसा लग रहा था मानो वे सच में अंतरिक्ष में पहुँच गए हों। यह नज़ारा ही  अद्भुत था।

उसी वक्त, दरवाज़े पर दस्तक हुई। बहादुर काका ने प्रिंसिपल मैम के साथ दरवाज़ा खोला। उनके माँ बाप बच्चों को गायब देख परेशान हो गए थे। प्रिंसिपल मैम पहले तो बहुत गुस्सा हुईं, लेकिन जब उन्होंने वर्मा सर का अविष्कार और बच्चों की आँखों में उस प्रोजेक्ट के लिए उत्साह देखा, तो उनका दिल पिघल गया।

अगले दिन, असेंबली में प्रिंसिपल मैम ने "स्कूल के तीसरे कमरे" का राज़ सबसे खोला। उन्होंने वर्मा सर के काम की तारीफ की और उस कमरे को आधिकारिक तौर पर "ज्ञानोदय इनोवेशन क्लब" बनाने की घोषणा की। समीर, रोहन और प्रिया को उनकी गलती के लिए छोटी-सी सज़ा मिली, लेकिन उन्हें उस क्लब का पहला सदस्य भी बनाया गया।

अब वह कमरा कोई रहस्यमयी या डरावनी जगह नहीं, बल्कि स्कूल की सबसे पसंदीदा जगह बन गया, जहाँ बच्चे विज्ञान के नए-नए चमत्कार सीखते थे। समीर और उसके दोस्तों ने सीखा कि हर रहस्य डरावना नहीं होता, और कभी-कभी सबसे बड़े राज़ के पीछे एक खूबसूरत सच छिपा होता है।

 

कहानी से सीख:

  • जिज्ञासा अच्छी बात है, लेकिन हमें नियम नहीं तोड़ने चाहिए।

  • सुनी-सुनाई बातों पर यकीन करने से पहले सच जानने की कोशिश करनी चाहिए।

  • डर का सामना करने पर ही सच्चाई सामने आती है।

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